देश भर के अस्पताल वर्तमान में अपनी पूरी क्षमता से भी अधिक बोझ झेल रहें हैं ऐसा देश में अचानक से हुये कोरोनावायरस विस्फोट से संक्रमित मरीजों और ऑक्सीजन की कमी के बीच हुआ है, देश भर में COVID19 की एक अत्यंत चिंतास्पद स्थिति बनी हुई है और ऐसे में सोशल मंचों पर COVID-19 को लेकर कई घरेलू उपचार व स्वयं परीक्षण के कई पोस्ट वायरल हो रहें हैं, ऐसा ही एक पोस्ट फेफड़ों में ऑक्सीजन के स्तर नाप COVID की पुष्टि/अपुष्टि को लेकर वायरल हो रहा है, यह वीडियो दर्शकों से २० सेकंड से अधिक समय तक अपनी सांस रोककर रखने का आग्रह करता हैं। वीडियो के अनुसार, यदि कोई अपनी सांस को लंबे समय तक रोक सकता है, तो इसका मतलब है कि वह व्यक्ति कोरोनावायरस से मुक्त है |
पोस्ट में क्या है?
वायरल हो रहे वीडियो में लिखा गया है कि
“अपने फेफड़ों के ऑक्सीजन लेवल को जाँचिये | यदि आप बिंदु के अनुसार A से B तक सांस रोक लेते है तो आप कोरोना से मुक्त हो सकते हो |”
अनुसंधान से पता चलता है कि…
फैक्ट क्रेसेंडो ने पाया कि सांस रोक पाने की सक्षमता से यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई व्यक्ति कोरोना मुक्त है या नहीं | यह तकनीक वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं है |
जाँच की शुरुवात हमने विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर जाकर इस वायरल मैसेज से संबंधित उपाय के बारे में कीवर्ड सर्च कर किया जिसके परिणाम से हमने पाया कि ऐसे दावे पिछले साल भी फैलाये गये थे जिसके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक स्पष्टीकरण जारी किया था जिसमे साफ़ साफ़ लिखा गया है कि खांसी या बेचैनी महसूस किए बिना 10 सेकंड या उससे अधिक के लिए अपनी सांस रोक पाने में सक्षम होने का मतलब यह नहीं है कि आप कोरोनावायरस बीमारी या किसी अन्य फेफड़ों की बीमारी से मुक्त हैं |
और अधिक कीवर्ड सर्च करने पर हमें यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड यूसीएच में संक्रामक रोगों के उपाध्यक्ष और प्रमुख डॉ० फहीम यूनुस का वायरल दावे से सम्बंधित दिया गया एक मत मिला जिसमें वे स्पष्ट रूप से वायरल हो रहे दावों को खारिज करतें है | पिछले साल उन्होंने यह कहते हुए ट्वीट किया था कि,
“कोरोनावायरस वाले अधिकांश युवा १० सेकंड से अधिक समय तक अपनी सांस रोक पाएंगे। और वायरस के बिना कई बुजुर्ग ऐसा करने में सक्षम नहीं होंगे | इसका यह मतलब नही है कि आप कोरोनावायरस के संक्रमण से मुक्त या संक्रमित है |”
तद्पश्चात फैक्ट क्रेसेंडो ने कोलकाता के फोर्टिस हॉस्पिटल के पुल्मोनोलोगिस्ट डॉक्टर राजा धर से संपर्क किया जिन्होंने हमें बताया कि “कोरोनोवायरस की पुष्टि/अपुष्टि इस श्वास परीक्षण के द्वारा करना निश्चित रूप से भ्रामक है क्योंकि एक एसिम्प्टोमाटिक कोविड-१९ (Asymptomatic Covid_19) रोगी भी लंबे समय तक सांस रोक सकता है | इसलिए, यह परीक्षण कोविड -19 से संक्रमित है या नहीं, इसकी वास्तविक प्रारूप नहीं देता है |”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के अनुसार, कोरोनावायरस की जांच के लिए वर्तमान में तीन प्रकार के परीक्षण किए जा रहे हैं |
१-पी.सी.आर टेस्टिंग होती है, जहाँ नैसोफैरिनजीअल या फैरिनजीअल स्वाब लिया जाता है।
२-दूसरा एंटीजन परीक्षण है, जहां स्वास्थ्य विशेषज्ञ वायरस के बाहरी प्रोटीन का पता लगाने की कोशिश करते हैं।
३-तीसरा प्रकार मानव शरीर के भीतर पता लगाना है कि क्या उनके शरीर में एंटीबॉडी तैयार हुई हैं |
परंतु इनमें से कही भी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि सांस रोक पाने की सक्षमता/असक्षमता होने पर कोरोनावायरस की रोकथाम व पुष्टि हो सकती है | सांस रोक पाने की सक्षमता अलग अलग व्यक्ति की उम्र, स्टैमिना और तंदुरुस्ती पर निर्भर करता है |
निष्कर्ष: तथ्यों की जाँच के पश्चात हमने वायरल पोस्ट को गलत पाया है | सांस रोक पाने की सक्षमता से यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई व्यक्ति कोरोना मुक्त है या नहीं | यह तकनीक किसी भी तरीके से वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नहीं है | इस तकनीक को कोरोना के टेस्ट के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए |
Title:कोरोना की पुष्टि/ अपुष्टि मात्र सांस रोकने के परीक्षण से नहीं होती है|
Fact Check By: Aavya RayResult: False
एक सभा को संबोधित करने के दौरान डोनाल्ड ट्रंप को थप्पड़ मारे जाने के दावे…
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को हैदराबाद यूनिवर्सिटी के बगल में एक भूखंड पर पेड़ों को…
डिंपल यादव ने मोदी सरकार की तारीफ करते और यूपीए सरकार के कार्यकाल की आलोचना…
बीजेपी नेता धीरज ओझा का वायरल ये वाला वीडियो पुराना है, वीडियो हाल-फिलहाल में हुई…
सनातन धर्म को 'गंदा धर्म' बताने के दावे से ममता बनर्जी का वायरल वीडियो अधूरा…
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पास गाचीबोवली में 400 एकड़ जंगल की कटाई को लेकर हैदराबाद…