१९ जून २०१९ को “घरेलु रामबाण नुस्के हेल्थ टिप्स” नामक एक फेसबुक पेज पर एक विडियो पोस्ट किया गया है | विडियो के शीर्षक में लिखा गया कि *सूचनार्थ* आप सभी को सूचित किया जाता है कि फिलहाल *लीची* खाने से परहेज करें, अपने बच्चों को कदाचित *लीची* ना दें वरना चमकी बुखार से ग्रसित हो सकते है, फिलहाल अभी स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे लाइलाज बीमारी घोषित कर दिया है | अतः जबतक इस वायरस का पूर्णतः रोकथाम नही हो जाता तबतक *लीची* के सेवन से दूर रहे |

वायरल पोस्ट में दिखाए वीडियो में एक लीची के अंदर एक कीड़ा देखा जा सकता है | एक पुरुष आवाज हिंदी में चेतावनी देता है कि "लीची खाने से पहले सौ बार सोचें, ये कीड़े आपके बच्चे को बीमार कर देंगे" | इस विडियो के माध्यम से यह दावा किया जा रहा है कि लीची फल खाने से उसमे पाए जाने वाले कीड़े बच्चों के पेट में जाते है, और उनको जानलेवा बुखार हो सकता है, जिसका नाम चमकी बुखार है | साथ ही कहा जा रहा है कि इस बीमारी को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा "लाइलाज" बीमारी घोषित कर दिया गया है | यह विडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी तेजी से साझा किया जा रहा है | फैक्ट चेक किये जाने तक यह पोस्ट २५१४ प्रतिक्रियाएं प्राप्त कर चुकी थी | इस विडियो को ८५००० व्यूज मिल चुकी है |

फेसबुक पोस्ट | आर्काइव विडियो

क्या वास्तव में लीची में पाए जाने वाले कीड़े पेट में जाने से बच्चों को जानलेवा बीमारी चमकी बुखार हो सकता है? हमने इस विडियो व दावें की सच्चाई जानने की कोशिश की |

संशोधन से पता चलता है कि...

जांच की शुरुआत हमने गूगल सर्च पर चमकी बुखार के बारें में जानकारी प्राप्त करने से की | परिणाम से हमें जागरण जोश द्वारा प्रकाशित खबर मिली | लेख में दी गयी जानकारी के अनुसार एन्सेफलाइटिस को आम तौर पर चमकी बुखार, असेप्टिक एन्सेफलाइटिस या अक्युट वायरल एन्सेफलाइटिस कहा जाता है | इस बीमारी को इसे मस्तिष्क में सूजन के रूप में परिभाषित किया गया है जिससे मस्तिष्क में सूजन या जलन हो सकती है |

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यूके के नेशनल हेल्थ सर्विस की वेबसाइट के अनुसार चमकी बुखार वायरस फैलने की वजह से होता है | इस वायरस को "वायरल एन्सेफलाइटिस" के रूप में जाना जाता है | कई केस में ऐसा देखा गया है कि एन्सेफलाइटिस बैक्टीरिया, कवक या परजीवी के कारण होता है | यहाँ कहीं भी ऐसा नहीं कहा गया है कि चमकी बुखार लीची में मौजूद कीड़े के प्रभाव से होता है |

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चमकी बुखार के बारें में ढूँढने पर हमने पाया कि, मुज़फ़्फ़रपुर से इस साल बच्चों की मौत की खबरें आईं, कई अखबारों ने लीची को मौतों से संबंधित रिपोर्ट दी है | मुज़फ़्फ़रपुर अपने लीची के बागों के लिए प्रसिद्ध है और इस समय इस क्षेत्र में रसीले लाल फलों की कटाई की जा रही है | सरकारी रिपोर्टों के अनुसार १९९५ से लगभग हर साल, इस समय के दौरान मुज़फ़्फ़रपुर में एन्सेफलाइटिस से मौतें हो रही हैं |

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चमकी बुखार और लीची के बीच क्या सम्बन्ध है?

Research- 1
हमें २०१७ में अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा पत्रिका "द लांसेट" में प्रकाशित अमेरिका और भारत के वैज्ञानिकों द्वारा एक संयुक्त अध्ययन मिला | इस रिपोर्ट के अनुसार, "मुजफ्फरपुर में तीव्र एन्सेफैलोपैथी का प्रकोप हाइपोग्लाइसीन ए और एमसीपीजी विषाक्तता दोनों से जुड़ा हुआ है" | ये दोनों तत्व लीची में प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं | इस रिपोर्ट में ऐसा कही नहीं कहा गया है कि यह कि चमकी बुखार सिर्फ लीची खाने से ही फैलता है |

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द लांसेट

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Research- 2

भारत में एक केस स्टडी ने सुझाव दिया कि (सिंह और अन्य २०१६), एन्सेफैलोपैथी लक्षणों के समान पैटर्न और इसकी मौतों ने लीची के फसल के मौसम के वक्त ही होता है | इस अध्ययन में साक्षरता की स्थिति और माता-पिता की व्यावसायिक स्थिति के साथ रोग के महत्वपूर्ण संबंध भी पाए गए | निम्न आर्थिक वर्ग से होने के कारण उन बच्चों में कुपोषण की संभावना बढ़ गई |

इस प्रकार, विशिष्ट लीची उत्पादक बागों के करीब परिवारों की आर्थिक स्थिति का निर्धारण करके, यह निर्धारित किया गया कि गरीबी और कुपोषण एन्सेफैलोपैथी रोग (चमकी बुखार) का एक प्रमुख निर्धारक है | चूंकि सभी कुपोषित बच्चे लक्षणों से पीड़ित नहीं थे, इसलिए यह स्पष्ट था कि खाली पेट लीची के सेवन ने इस रोग की शुरुआत को प्रभावित किया |

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Research- 3

२०१३-२०१४ में, नेशनल सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल, इंडिया (NCDC) और यूएस सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (US CDC) ने बीमारी के संभावित कारणों की पहचान करने के लिए एक जाँच शुरू की |

उनका उद्देश्य किसी भी अन्य ज्ञात रोगजनकों (पैथोजन) या संक्रामक एजेंटों (इन्फेक्शस एजेंट), लीची के फलों से जुड़े भारी धातुओं या कीटनाशकों को समाप्त करना था, जो रोग को ट्रिगर कर सकते थे | प्रयोगशाला द्वारा किये गए जांच में उपरोक्त संभावित कारक का कोई सबूत नहीं मिला, और डेटा अनुसार बीमारी एक नॉन इंफ्लेमेटरी (सुजन नहीं होना) एन्सेफैलोपैथी के अनुरूप थी |

एक सामान्य प्रयोगशाला खोज से हमने पाया कि अस्पताल में एडमिट होते समय उनका शुगर लेवल काफ़ी कम था (<७० मिलीग्राम / डीएल) (श्रीवास्तव, आकाश, और अन्य २०१५) |

इस प्रकार, यह अध्ययन पुष्टि करता है कि कम ग्लूकोज, जो कुपोषण या रात को कम भोजन के कारण चमकी बुखार के लक्षण शुरू होते है | यही कारण की वजह से बिहार में बच्चों को यह बीमारी होती है |

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Research- 4

२०१७ में "द अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन" (एएसटीएमएच) में एईएस (AES) पर प्रकाशित लेख मिला | बांग्लादेश और अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक अन्य संयुक्त शोध के रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया कि यह बीमारी लीची के वजह से नहीं फैलती, बल्कि उन प्रतिबंध कीटनाशकों के वजह से होती थी जिन्हें लीची के बगीचे पर इस्तेमाल किये जाते है | लेख के अनुसार यह प्रतिबंध कीटनाशक मरीजों के मौत का कारण है |

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द अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन

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Research- 5

२०१७ में, प्रभावित बच्चों का एक अध्ययन किया गया था जिसमे लीची के सेवन और बीमारी के बीच संबंध का पता लगाने के लिए रक्त, मस्तिष्कमेरु द्रव और मूत्र जैसे नमूनों का उपयोग करते हुए जांच की गयी | हालांकि परीक्षणों में संक्रामक रोगजनकों, कीटनाशकों, विषाक्त धातुओं और अन्य गैर-संक्रामक कारणों की अनुपस्थिति निर्धारित की गई थी, लेकिन इसमें हाइपोग्लाइसीन ए या मिथाइलीनसाइक्लोपीलेग्लिसिन (MCPG) (जॉन, २०१७) की उपस्थिति के लिए सकारात्मक परीक्षण किया |

(दास और अन्य लोग,२०१५) | आर्काइव लिंक

(शाह एंड जॉन, २०१४) | आर्काइव लिंक

हाइपोग्लाइसीन ए और MCPG दोनों ही ग्लाइकोजन के संग्रहित यकृत भंडार से ग्लूकोज के जमाव को अवरुद्ध करके हाइपोग्लाइकेमिया (कम ग्लूकोज) और इससे जुड़े चयापचय उपापचय(Metabolic Derangement) (अंग प्रणाली को बंद करना) का कारण बनते हैं | चूंकि, ये ग्लाइकोजन भंडार पहले से ही कुपोषित बच्चों में कम हैं, जो शाम के भोजन को नहीं खाते है, उनमें ऐसे यौगिकों (हाइपोग्लाइसीन ए और एमपीसीजी) का प्रभाव सबसे अधिक है |

कारणों का निर्धारण करने के लिए, १०४ लोगों (केस स्टडी) की तुलना उसी उम्र के अन्य बच्चों के साथ की गई, जिनके लक्षण (नियंत्रण) नहीं थे, और यह देखा गया था कि रोग के लक्षणों की शुरुआत उन बच्चों के जुडी हुई थी जिन्होंने या तो लीची का सेवन किया या फिर पूर्ववर्ती २४ घंटों में शाम का भोजन नहीं खाया |

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हमें “द हिन्दू” द्वारा प्रकाशित खबर मिली जो T. Jacob John द्वारा लिखा गया है | वे CMC वेल्लोर से वायरोलॉजी के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर है | उनके लेख के अनुसार यह बीमारी लाइलाज नहीं है | उन्होंने लिखा है कि अगर दिमागी बीमारी की शुरुआत के चार घंटे के भीतर बीमार बच्चों को १०% ग्लूकोज से संक्रमित किया जाता है, तो रिकवरी तेज और पूरी होती है |

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क्या स्वाथ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने चमकी बुखार को लाइलाज बीमारी घोषित किया?

१९ जून २०१९ को, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि उन्होंने उन परिवारों की सामाजिक-आर्थिक प्रोफ़ाइल पर चर्चा की है, जिन्होंने इस रोज की रिपोर्ट की है, उनके पोषण प्रोफाइल, चल रहे हीटवेव जैसे मुद्दे, मरने वाले बच्चों में हाइपोग्लाइसीमिया के उच्च प्रतिशत की सूचना देते हैं | इन प्रेस प्रकाशनि में कही भी ऐसा नहीं लिखा गया है कि चमकी बुखार एक लाइलाज बीमारी है |

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इस रोग से जुड़े हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित प्रेस विज्ञप्ति को पढने के लिए नीचे दी गयी लिंक पर क्लिक कीजिये |

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हमने इस विषय पर अधिक जानकरी प्राप्त करने के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के डायरेक्टर के संपर्क करने की कोशिश की है | उनसे जानकारी मिलते ही हम इस स्टोरी को अपडेट कर देंगे |

निष्कर्ष: तथ्यों के जांच के पश्चात हमने उपरोक्त पोस्ट को गलत पाया है | वायरल पोस्ट के साथ साझा किया गया विडियो असंबंधित है | दावें अनुसार चमकी बुखार का एक मात्र कारण लीची फल का सेवन करना नही है | यह बीमारी ज़्यादातर कुपोषित बच्चों के बीच देखी गयी है | कुपोषित बच्चों को खाली पेट लीची के सेवन करने पर चमकी बुखार हो सकता है, परंतु चमकी बुखार का मूल कारण लीची का सेवन नहीं है | साथ ही चमकी बुखार लीची में पाए गए कीड़े खाने से नहीं होता है | चमकी बुखार एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी है |

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Title:क्या लीची में पाए जाने वाले कीड़े पेट में जाने से बच्चों को ‘चमकी बुखार’ होता है?

Fact Check By: Drabanti Ghosh

Result: False