२७ मई २०१९ को रविकुमार स्टेफेन जे नामक एक फेसबुक यूजर ने एक तस्वीर पोस्ट की | तस्वीर के शीर्षक में लिखा गया है कि “सूरत में बिना किसी राजनेता या राजनीतिक समर्थन के ईवीएम के खिलाफ सार्वजनिक रूप से विरोध शुरू हो गया | मीडिया यह नहीं दिखा रहा है |” तस्वीर को तीन अलग अलग तस्वीरों को जोड़कर एक कोलाज के रूप में साझा किया जा रहा है | कोलाज के ऊपर लिखा गया है कि “सूरत में ईवीएम के खिलाफ बड़ी भरी मात्रा में बिना किसी नेता के लोग सड़कों पर उतरे हुए है और कोई भी बिकाऊ मीडिया इस खबर को नहीं दिखा रहा है | पूरा सूरत सड़कों पर ऊबल रहा है | चलो कहीं से तो ईवीएम् का विरोध शुरू हुआ | शेयर करे ज्यादा से ज्यादा |” यह तस्वीर सोशल मीडिया में काफ़ी चर्चा में है |
संशोधन से हमें पता चलता है कि…
जांच की शुरुआत हमने इस तस्वीर को स्क्रीनशॉट के माध्यम से तीन अलग अलग तस्वीर में काटने से की | तस्वीरों को अलग करने के पश्चात हमने इन तस्वीरों को गूगल रिवर्स इमेज सर्च किया |
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पहले तस्वीर के परिणाम से हमें १३ मई २०१७ को आउटलुक इंडिया द्वारा प्रकाशित खबर मिली | खबर में इस तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है कि जबकि कुछ लोग वीवीपीएटी का जयजयकार करते है आम आदमी पार्टी और शिवसेना अपना संदेह व्यक्त करते हुए विरोध में निकले |
द हिंदुस्तान टाइम्स ने भी इस विरोध से जुडी खबर को ११ मई २०१७ को प्रकाशित किया था | यह तस्वीर चुनाव आयोग के कार्यालय के बाहर आम आदमी पार्टी समर्थकों के एक समूह द्वारा किए गए विरोध से संबंधित है, जिसमें मांग है कि भविष्य के सभी चुनावों में वीवीपीएटी से सज्जित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग किया जाए | यह विरोध नई दिल्ली में हुआ था |
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गूगल रिवर्स इमेज सर्च के परिणाम से हमें एक ब्लॉग मिला जिसमे इस तस्वीर का इस्तेमाल किया गया था | यह ब्लॉग २० जनवरी २०१८ को प्रकाशित किया गया था | तस्वीर में लोगों के हाथ में गुजराती भाषा में बैनर देखे जा सकते है | विरोधी के पीछे हम एक बोर्ड लगा हुआ देख सकते है | बोर्ड के ऊपर के अक्षरों को गूगल ट्रांसलेट करने पर “महात्मा गांधी नगर गृह” लिखा पाया | इस जगह को गूगल मैप्स पर ढूँढने पर हमने पाया कि यह वड़ोदरा में स्थित है | इससे हमें इस बात से स्पष्ट हो सकते है कि यह विरोध पुराना है और वड़ोदरा में हुआ था |
हमें २८ दिसंबर २०१७ को सचिन गुर्जर नामक एक ट्विटर यूजर द्वारा एक ट्वीट मिला | ट्वीट में उसने तीनों तस्वीरें पोस्ट की है | इसक मतलब यह है कि उपरोक्त तस्वीर २०१७ की है |
इसके पश्चात हमें इस विरोध का एक यू-ट्यूब विडियो मिला | यह विडियो २० दिसंबर २०१७ को प्रसारित किया गया था | विडियो के विवरण में लिखा गया है कि “वड़ोदरा (गुजरात) | गाँधीनगरगृह के पास लोकशाही बचाव समिति द्वारा एक धरना का प्रदर्शन किया गया जिसमे हाल ही मे हुये २०१७ के चुनाव मे भाजपा की ईवीएम् से हुई जीत को लेकर लोगो को शंका होने लगी है ईवीएम् से हुई जीत बहुत चर्चित है |”
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तीसरी तस्वीर को भी हमें गूगल रिवर्स इमेज सर्च के परिणाम से ढूँढा | हमें २४ अप्रैल २०१७ को हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित खबर मिली | इस खबर में उपरोक्त तस्वीर का इस्तेमाल करते हुए लिखा गया है कि यह तस्वीर १४ मार्च २०१६ को खिंची गयी है | गाजियाबाद में प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने जिला मुख्यालय पर एक प्रदर्शन किया और हाल ही के यूपी विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल किये गए ईवीएम मशीनों की जांच की मांग की |
निष्कर्ष: तथ्यों की जांच के पश्चात हमने उपरोक्त पोस्ट को गलत पाया है | तीनों तस्वीरें पुरानी है और अलग अलग जगह (नई दिल्ली, वड़ोदरा, गाजियाबाद) की है | इन पुराने तस्वीरों को २०१९ के लोकसभा चुनाओं के बाद हाल ही में हुए विरोध के भ्रामक कथन के तौर पर साझा किया जा रहा है |
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