चैलेंज वोट, टेन्डर वोट, 14 फासदी टेन्डर वोट होने पर पुनर्मतदान और वोटर आईडी कार्ड के बिना वोट देने की प्रावधान के बारे में दी गई जानकारी आंशिक रूप से गलत है।

भारत में अभी कुछ ही हफ्तों में लोक सभा के चुनाव होने वाले हैं और इस चुनाव को लेकर सभी राजनैतिक दलों की ओर से प्रचार जोरों से शुरू है| चुनाव को लेकर सोशल मीडिया पर तरह तरह के दावे वायरल हो रहे हैं। इसी बीच मतदाताओं के चुनावी हकों को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहा है|
जिसमें दिख रही महिला कहती है कि
“हमारा वोट काट दिया गया और हमारा वोट कोई डाल गया का रोना बंध करिए…..जब आप पोलिंग बूथ पर पहुंचते हैं और पाते हैं कि आपका नाम मतदाता सूची में नहीं है| तो बस अपना आधार कार्ड या मतदाता पहचान पत्र दिखाएं और धारा 49a के तहत “चुनौती वोट” मांगें और अपना वोट डालें। यदि आप पाते हैं कि किसी ने आपका वोट पहले ही डाल दिया है, तो “टेंडर वोट” मांगें और अपना वोट डालें। यदि कोई भी पोलिंग बूथ 14% से अधिक टेंडर वोट रिकॉर्ड करता है, तो ऐसे पोलिंग बूथ में पुनर्मतदान किया जाएगा। एक और जरूरी सूचना कि जिसके पास वोटर कार्ड या जिनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है अब उनको फिकर करने की जरूरत नहीं है। जिस दिन वोटिंग हो रही है उस दिन पोलिंग बूथ में जाए अपने दो फोटो के साथ या फिर कोई ऐसी आईडी प्रूफ लेले जिसमे उनका फोटो लगा हुआ हो, वो दिखाए और साथ साथ फ़ॉर्म नंबर 8 भरे जोकि आपको पोलिंग बूथ पर ही मिल जाएगा और अपना वोट डाले| कृपया यह बहुत महत्वपूर्ण संदेश अधिकतम समूहों और दोस्तों के साथ साझा करें क्योंकि सभी को इसके बारे में पता होना चाहिए।”
इस वीडियो के साथ मूल चार दावे किए गए है जो नीचे लिखे गए है:
1. अगर किसी का नाम मतदाता सूची में नहीं है तो वह आधार कार्ड या मतदाता पहचान पत्र दिखाकर धारा 49a के तहत ‘चुनौती वोट’ के अधिकार के तहत अपना वोट डाल सकता है।
2. अगर किसी ने वोट पहले ही डाल दिया है तो ‘टेंडर वोट’ के हक के साथ मतदान कर सकते हैं।
3. अगर किसी पोलिंग बूथ पर 14 फीसदी से अधिक ‘टेंडर वोट’ पड़े हैं तो वहां पुनर्मतदान होगा।
4. अगर किसी के पास वोटर कार्ड ना हो तो वे कोई भी फोटो आई.डी दिखाकर और फ़ॉर्म नंबर 8 भरकर अपना वोट डाल सकते है।
अब जानते हैं की उपरोक्त दावों की सच्चाई क्या है।
अनुसंधान से पता चलता है कि…
जांच की शुरुआत में हुमने वायरल वीडियो के साथ किए गए दावों को एक एक कर गूगल पर कीवर्ड सर्च करने से शुरू की, जिसके परिणाम से हमने पाया है कि:
पहला दावा- क्या है ये चुनौती वोट?
नवभारत टाइम्स के अनुसार पोलिंग बूथ पर मौजूद राजनीतिक पार्टियों के एजेंट किसी वोटर के वोट को चैलेंज कर सकते हैं। अगर एजेंट को लगता है कि संबंधित वोटर फर्जी है और वो किसी दूसरे व्यक्ति की वोट डालने आया है, तो वो पीठासीन अधिकारी से बोल कर वोट को चैलेंज कर सकता है, इसे चैलेंज्ड वोट कहा जाता है। इसके लिए दो रुपये फीस देनी होती है। पीठासीन अधिकारी उस मतदाता के दस्तावेजों की जांच करते हैं कि वह सही वोटर है या नहीं। अगर वोटर सही होता है, तो उसे वोट डालने की मंजूरी दे दी जाती है और अगर वो फर्जी होता है, तो उसे तुरंत पुलिस को सौंप दिया जाता है।
इस प्रकार दावा झूठा है। जब किसी व्यक्ति का नाम मतदान सूची में नहीं है, तो वह मतदान नहीं कर सकता। ईसीआई नागरिकों को उनके निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में सफलतापूर्वक नाम शामिल होने के बाद मतदाता पहचान पत्र जारी करता है। सिर्फ इसलिए कि किसी के पास अपना मतदाता पहचान पत्र है इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें निश्चित रूप से मतदान करने की अनुमति दी जाएगी – क्योंकि यह अनिवार्य है कि मतदान करने के लिए उनका नाम मतदाता सूची में दिखाई देना चाहिए।
अब जानते है की क्या धारा 49a के तहत जनता को ‘चुनौती वोट’ का अधिकार मिलता है?
चुनाव संचालन नियम, 1961 के अनुसार, धारा 49a का शीर्षक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का डिज़ाइन है। इसमें ‘चुनौती वोट’ का जिक्र नहीं है जैसा कि वायरल संदेश में दावा किया गया है। अनुभाग में लिखा है: “प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (बाद में वोटिंग मशीन के रूप में संदर्भित) में एक नियंत्रण इकाई और एक मतदान इकाई होगी और ऐसे डिज़ाइन की होगी जैसा कि चुनाव आयोग द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है।”

वायरल दावे को इलेक्शन कॉमिशन ऑफ इंडिया ने 17 फरवरी 2022 को फर्जी बताते हुए उसका खंडन किया था, जिसे आप नीचे देख सकते हैं।
इससे हम स्पष्ट हो सकते है की पहला दावा गलत है।
दूसरा दावा- टेन्डर वोट क्या है?
कई बार ऐसा होता है कि जब मतदाता वोट डालने जाता है, तो उसे पता चलता है कि उसका वोट पहले ही डाला जा चुका है। ऐसे में वो अपने पीठासीन अधिकारी से इसकी शिकायत कर सकता है। पीठासीन अधिकारी से दस्तावेजों की जांच कर व उसकी पहचान संबंधित सवाल कर उससे टेंडर वोट डलवा सकता है। टेंडर वोट बैलेट पेपर पर लिया जाता है।
चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 42 के अनुसार, यदि मतदान अधिकारी किसी व्यक्ति को बताता है कि उसका वोट पहले ही डाला जा चुका है, तो उसे तुरंत इसे पीठासीन अधिकारी के ध्यान में लाना चाहिए। ऐसे मामले में, पीठासीन अधिकारी किसी की पहचान की पुष्टि करने के लिए प्रश्न पूछ सकता है।
एक बार जब वह आश्वस्त हो जाता है कि उनकी पहचान वास्तविक है, तो वह एक टेन्डर बैलट पेपर प्रदान करेगा और कोई भी ‘निविदा वोट’ डाल सकता है।
एक टेन्डर बैलट पेपर, मतदान इकाई पर प्रदर्शित बैलट पेपर के समान होता है, सिवाय इसके कि इसके पीछे ‘टेन्डर वोट’ शब्दों को (या तो मुद्रांकित या लिखित) लिखा जाएगा।

इससे हम स्पष्ट हो सकते है की वायरल दावा सच है।
तीसरा दावा- क्या किसी पोलिंग बूथ पर 14 फीसदी से अधिक ‘टेंडर वोट’ पड़े हैं तो वहां पुनर्मतदान होगा?
चुनाव संचालन नियम, 1961 की धारा 56 वोटों की गिनती के बारे में बात करती है जिसमें कहा गया है कि सामान्य गिनती प्रक्रिया के दौरान डाले गए टेन्डर वोटों की गिनती नहीं की जाती है और वे सीलबंद रहेंगे। यदि मतदान केंद्र पर 14% से अधिक टेंडर वोट दर्ज होते हैं तो पुनर्मतदान का कोई उल्लेख नहीं है। टेंडर वोटों की गिनती केवल उच्च न्यायालय के निर्देश पर ही की जाएगी। इसलिए यदि मतदान केंद्र पर 14% से अधिक टेंडर वोट दर्ज किए गए तो पुनर्मतदान का दावा गलत है।
चौथा दावा- वोटर आईडी ना होने पर आप फ़ॉर्म नंबर 8 भरकर अपना वोट डाल सकते है।
भारत का चुनाव आयोग उन भारतीय नागरिकों के लिए ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण की पेशकश करता है, जिन्होंने अर्हता तिथि (मतदाता सूची के पुनरीक्षण के वर्ष की पहली जनवरी) को 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है। नागरिक स्वयं को सामान्य मतदाता के रूप में नामांकित कर सकते हैं और राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल पर ऑनलाइन फॉर्म 6 भर सकते हैं। पंजीकृत मतदाताओं को भी अपने नामांकन की स्थिति की जांच करनी चाहिए।
सामान्य मतदाताओं को फॉर्म 6 भरना पद्धत है। यह फॉर्म ‘पहली बार के मतदाताओं’ और ‘दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं’ के लिए भी हैं।
फॉर्म 8 का उपयोग (नाम, फोटो, आयु, ईपीआईसी नंबर, पता, जन्म तिथि, आयु, रिश्तेदार का नाम, संबंध का प्रकार, लिंग) में किसी भी बदलाव के लिए किया जाता है।
इससे हम स्पष्ट हो सकते है की फ़ॉर्म 8 भरकर हम हमारा वोट नहीं डाल सकते है बल्कि ये फ़ॉर्म हमारे वोटर आईडी कार्ड में किसी भी बदलाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
भले ही आपके पास मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी) नहीं है, फिर भी यह जरूरी है कि आप मतदाता के रूप में पंजीकृत हों और आपका नाम मतदाता सूची में दिखाई दे।
मतदाता के रूप में पंजीकृत होने के लिए, आपको अपने विधानसभा क्षेत्र के निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ईआरओ) को फॉर्म -6 भरकर जमा करना होगा जिसके बाद आपका नाम मतदाता के रूप में मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा। फॉर्म-6 को ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से जमा किया जा सकता है।
यदि आपके पास अपना मतदाता पहचान पत्र या ईपीआईसी नहीं है, तो वोट डालने के लिए निम्नलिखित 11 निर्दिष्ट फोटो पहचान दस्तावेजों में से एक आवश्यक है:
पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, केंद्र/राज्य सरकार/पीएसयू/पब्लिक लिमिटेड कंपनी द्वारा कर्मचारियों को जारी किए गए फोटोयुक्त सेवा पहचान पत्र, किसी स्टेट बैंक या डाकघर द्वारा जारी फोटोयुक्त पासबुक, पैन कार्ड, एनपीआर के तहत आरजीआई द्वारा जारी स्मार्ट कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, श्रम मंत्रालय की योजना के तहत जारी स्वास्थ्य बीमा स्मार्ट कार्ड, फोटो सहित पेंशन दस्तावेज़, सांसदों/विधायकों/एमएलसी आदि को जारी किए गए आधिकारिक पहचान पत्र, आधार कार्ड।
एक बार जब कोई नागरिक मतदान करने के लिए पात्र हो जाता है और नामांकन कर लेता है, तो ईसीआई से एक मतदाता पर्ची जारी की जाएगी जो मतदाता सूची में नाम की पुष्टि करती है। यदि किसी के पास मतदाता पहचान पत्र नहीं है तो यह पर्ची, एक निर्धारित फोटो पहचान पत्र के साथ, मतदाता कार्ड के रूप में कार्य कर सकती है।
भारत के चुनाव आयोग ने मतदान के समय मतदाता पहचान को अनिवार्य बना दिया है – मतदान करने में सक्षम होने के लिए आपको ईसीआई द्वारा जारी अपना मतदाता पहचान पत्र या ईसीआई द्वारा अनुमत कोई अन्य दस्तावेजी प्रमाण दिखाना होगा। इसके अलावा, आपके पास मतदाता पहचान पत्र होने का मतलब यह नहीं है कि आपको निश्चित रूप से मतदान करने की अनुमति दी जाएगी।
यह आवश्यक है कि आपका नाम मतदाता सूची में शामिल होना चाहिए। एक बार जब आपको मतदाता सूची में अपना नाम मिल जाए और आपके पास ईसीआई द्वारा निर्धारित एक पहचान दस्तावेज (मतदाता पहचान पत्र या कोई अन्य स्वीकार्य दस्तावेज) भी हो, तो आपको मतदान करने की अनुमति दी जाएगी।
इससे हम स्पष्ट हो सकते है की चौथा दावा आंशिक रूप से सच है।
निष्कर्ष-
तथ्यों की जांच के पश्चात हमने वायरल वीडियो के साथ किए गए दावों को आंशिक रूप से गलत पाया है। वायरल वीडियो में किए गए दावे मतदाताओं को भ्रमित कर सकते है जिससे निर्वाचन के समय वोट देने में लोगों को मुश्किल हो सकती है। हमारे पाठकों से हम ये आवेदन करते हैं की मतदाताओं के आधिकारों से संबंधित किसी भी वीडियो या दावे पर विश्वास करने से पहले उससे हमारे द्वारा फैक्ट चेक करवाए या फिर इलेक्शन कमीशन के वेबसाईट पर जाकर उस जानकारी की पुष्टि करे।

Title:लोगों को उनके मतदान के अधिकार के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से वायरल संदेश आंशिक रूप से गलत है।
Fact Check By: Drabanti GhoshResult: Partly False
