
सोशल मीडिया पर एक तस्वीर को साझा किया जा रहा है, जिसमें एक वर्दी पहने व्यक्ति द्वारा एक दूसरे को पीटते हुए दिखाया गया है साथ ही यह दावा किया जा रहा है कि यह तस्वीर स्वतंत्रता सेनानी, भगत सिंह की है जिन्हें कोड़े से पीटा जा रहा है | इस तस्वीर को व्हाट्सएप और फेसबुक पर काफी तेजी से साझा किया जा रहा है | वायरल तस्वीर के कोने में हम एक अख़बार की कटिंग भी देख सकते है जहाँ हमें वायरल तस्वीर से संबंधित खबर दिख रही है |
सोशल मंचों पर वायरल पोस्ट के शीर्षक में लिखा गया है कि “भगत सिंह जी की कोड़े से मार खाते हुए ये दुर्लभ तस्वीर कभी अख़बार में छपी थी | और हमको पढ़ाया जाता है कि हमें आज़ादी नेहरु और गाँधी की वजह से मिली थी |”
अनुसंधान से पता चलता है कि…
जाँच की शुरुवात हमने तस्वीर को गूगल रिवर्स इमेज सर्च करने से की जिससे हमें पता चला कि अहमद अली कसूरी ने 2019 में लिखे एक लेख में इस तस्वीर का इस्तेमाल किया था | इस लेख के शीर्षक में लिखा गया है कि-
“जलियांवाला बाग मेसेकर 1919 और इट्स आफ्टर इफेक्ट्स इन कसूर” |
लेख में बताया जा रहा है कि पिटाई की तस्वीर कसूर रेलवे स्टेशन की थी | यह तस्वीर 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ली गई थी | कसूर शहर अब पाकिस्तान में है | लेख में उसी जगह यानी जहाँ १९१९ की तस्वीर को लिया गया था, ठीक उसी जगह पर २०१९ में खींची तस्वीर भी दर्शाई गई है|
तद्पश्चात अधिक जाँच करने पर हमें वेबैक मशीन से एक आर्काइव पुस्तक मिली जिससे हमें पता चला कि यह तस्वीर पहली बार बेंजामिन हॉरमिन की किताब “अमृतसर एंड अवर ड्यूटी टू इंडिया (1920)” में छपी थी | पुस्तक के पृष्ठ १२० इस तस्वीर को देखा जा सकता है। इस तस्वीर के शीर्षक में लिखा गया है कि, अंग्रेज ने कसूर रेलवे स्टेशन पर सीढ़ी से बंधे एक युवक की पिटाई की | हॉरमिन की पुस्तक 1920 में प्रकाशित हुई थी |
हमें जालियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे होने के मौके पर 2019 में “सब रंग” नामक एक वेबसाइट पर एक लेख में प्रकाशित सम दर्शित तस्वीर मिली | लेख में ब्रिटिश युग के दमन के दस्तावेजों और चित्रों का विवरण दिया गया है | इस लेख में राष्ट्रीय आर्काइव के रिकॉर्ड में रखी गई यातनाओं के बारे में बताया गया है जो अभी आम जनता के लिए उपलब्ध है | इस तस्वीर के शीर्षक में लिखा गया है कि “1919 में पूर्व पंजाब में एक व्यक्ति को बेत से मरते हुए दिखाया गया है |”
भगत सिंह की पुस्तक “जेल नोटबुक और अन्य लेखन” के अनुसार, भूपेन्द्र हूजा द्वारा एनोटेट किया गया था कि 1919 में भगत सिंह केवल 12 वर्ष के थे और लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल में पढ़ रहे थे | अप्रैल 1919 में, ब्रिटिश बल द्वारा हजारों निहत्थे भारतीयों की हत्या करने वाले जलियांवाला बाग हत्याकांड के कुछ ही दिनों बाद, भगत सिंह ने उस जगह का दौरा किया। पुस्तक में 1919 में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा उन्हें पीटे जाने या गिरफ्तार किए जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है | डिक्शनरी ऑफ़ मार्टियर: इंडिया फ्रीडम स्ट्रगल (1857-1947) नामक एक पुस्तक जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किया गया है, के अनुसार भगत सिंह ने वर्ष 1920 से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया |
निष्कर्ष: तथ्यों की जाँच के पश्चात हमने उपरोक्त पोस्ट को गलत पाया है | तस्वीर में दिख रहा शख्स जिसे पीटा जा रहा था, वह स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह नहीं है | यह तस्वीर 1919 के आसपास कसूर रेलवे स्टेशन (अब पाकिस्तान) में ली गई थी। भगत सिंह तब केवल 12 वर्ष के थे और लाहौर के डीएवी स्कूल में पढ़ रहे थे। 1920 से पहले भगत सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय रूप से भाग नहीं लिया था |

Title:तस्वीर में दिख रहा शख्स जिन्हें पीटा जा रहा था, वह स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह नहीं है |
Fact Check By: Aavya RayResult: False
